6/10/2007

राहुल सांकृतायन का घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृतायन ने अपनी पोथी में जो बात कही, वह आज भी घुमक्कड़ों के लिए महत्वपूणॆ है। 'अथातो घुमक्कड़ जिग्यासा', 'जंजाल तोडो', 'विद्या और वय', 'स्वावलंबन','शिल्प और कला', 'स्त्री घुमक्कड़', 'धमॆ और घुमक्कड़ी', 'मृत्यु-दशॆन', 'लेखनी और तूलिका', 'निरुद्देश्य' जैसे प्रकरणों के द्वारा राहुल ने घुमक्कड़ों को दिशा और दशा बतलाने का काम किया है। इसके जरिए जहां वे पिछडी और घुमक्कड़ जातियों के बारे में विस्तार से बताते हैं, वहीं प्रेम संबंधों की स्वाभाविकता पर भी बात करते हैं। वे कहते हैं, 'जिन प्रेमिकाऒं को घुमक्कड़ों का अनुभव है, वे जानती ही हैं- परदेश की प्रीत, भुस का तापना। दिया कलेजा फूंक, हुआ नहीं अपना।'राहुल अपने जीवन में जितने देश-विदेश कि यात्रा की, लेखनी साहित्य यात्रा को लेकर भी ुतनी ही चलाई। ुनका सीधा मानना था कि प्राचीन काल में घुमक्कड़ी वृत्ति न होती तो सभ्यता ही रुक-ठहर जाती, ुसका इतिहास नहीं होता। मनुष्य चलता रहा और सभ्यता का इतिहास बनता गया। यायावरी ने जीवन को नई गतिशीलता दी, नए संपकॆ हुए, सभ्यताओं का आदान-प्रदान हुआ और सांस्कृतियों को नया आयाम मिला। ुनकी मान्यता थी कि जब कोई देश यायावरी छोड देता है तो रूक-ठहर जाता है।जारी॰॰॰

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