9/09/2007

तुम न होते तो हम

अक्सर जिन्दगी की राहों में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जब किसी का साथ हौसला देता है। पुराने दर्द को भुलाने में मदद करता है। हमसाया ऐसा जो नए एहसास को पैदा कर जिन्दगी की विकट राहों पर चलना आसान कर देता है। जीवन की इस भुलभुलिया की नजाकत समझते हुये दिनेश कुछ यूं बयां करते हैं...

इतनी तन्हाईयाँ थी मर जाते
तुम न होते तो हम बिखर जाते

कोई अपना भी रास्ता तकता
शाम ढलते ही हम भी घर जाते

तू नए जख्म फिर भले देता
जो पुराने थे तो मर जाते

हैं अभी औरों के जैसे हो जाता
पर ये अहसास मेरे मर जाते

हम जहाँ से चले थे, लौट आये
और जाते भी तो किधर जाते.

9/08/2007

हौसला जो परों में रखते हैं

आज फिर दिनेश रघुवंशी के ग़ज़ल में मस्त होते हैं, कुछ यूं...

हौसला जो परों में रखते हैं
आसमान ठोकरों में रखते हैं

जान लेते हैं जो हदें अपनी
पांव वे चादरों में रखते हैं

अपने मन में बसा लिया उसको
सब जिसे मंदिरों में रखते हैं

लोग कैसी पसंद वाले हैं
खुशबुओं को घरों में रखते हैं

वे ही अब रहजनों में शामिल हैं
हम जिन्हें रहबरों में रखते हैं।

9/04/2007

शायर की सोच का बुनियादी फर्क और दिनेश रघुवंशी

आम आदमी और एक शायर की सोच का बुनियादी फर्क तो अहसास का ही होता है। आम आदमी जिन्दगी जीता है, शायर अहसास जीता है। आम आदमी की जिन्दगी में अहसास आते हैं, चले जाते हैं। शायर की जिन्दगी अहसास की जमीं पर तहर kar रूक जाती है। बेबसी, तिश्नगी, मजबूरी और खामोशी किसकी जिन्दगी में नही आते। मगर इन अह्सासात का जिन्दगी होकर रह जाना सिर्फ और सिर्फ एक शायर की सोच के लिए ही मुमकिन है।
मजबूरी औरों के जैसा होने में नहीं है, मजबूरी है अह्सासात को जिंदा रखने की। अपने अहसास को जिंदा रखना कोई आसान खेल नहीं है। इसके लिए आदमी को वह सब कुछ सहना पड़ता है जो गुजरे तो पत्थरों के दिल भी दहला दे, फिर आदमजात की तो बिसात ही क्या?
दिनेश रघुवंशी फरीदाबाद में रहते हैं.इनकी गजलगोई कि एक खास सिफत यह है कि वे अपनी अशआर को इतनी नफासत-नजाकत से सजाते हैं की उनके कंटेंट को समझने के लिए अहसास के दरवाजे खुले रखना बेहद जरुरी है। भाषा, शैली और शबद- चयन में उनकी संवेदनाओं के अनुगूँज दूर तक सुनाई पड़ती है। बानगी देखें।

तेरी जादूगरी पे हँसता हूँ

तेरी जादूगरी पे हँसता हूँ
या मैं अपनी खुदी पे हँसता हूँ

जिन्दगी तू रुला नहीं पाई
मैं तेरी बेबसी पे हँसता हूं


सब मेरी सादगी पे हँसते हैं
और मैं सबकी हंसी पे हँसता हूँ

ये भटकना तो उम्र भर का है
अपनी आवारगी पे हँसता हूँ.

जिन्दगी मुझपे रोज हंसती थी

आज मैं जिन्दगी पे हँसता हूँ.