11/25/2007

तसलीमा तो मात्र बहाना है


तसलीमा तो मात्र बहाना है



बंगलादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा को जिस तरह कोलकता से जयपुर और जयपुर से दिल्ली ले जाने का नाटक रचा जा रह है, वह वास्तव में भारत जैसे देश के लिए शर्मनाक है। पूरे देश को इस मामले मन बरगलाया जा रह है और नंदीग्राम की ओर से ध्यान विमुख किया जा रहा है।


अभी तक तसलीमा से मेरी दो बार मुलाक़ात हुई है। पहली बार जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाई करते वक्त हुई थी। दिल्ली के प्रगती मैदान में पुस्तक मेला लगा था। संजोग वश वाणी प्रकाशन में कुछ मित्रों के साथ वही था। क्लास के द्वारा पेपर निकालने की योजना पर भी काम चल रह था। मेरे दिमाग में पता नही किया सूझी मैं उनसे बात करने और अपनी पेपर के लिए बात कर लिया। इस क्रम में मेरी सहायता मेरे गुरु रहे फिल्म मेकर ने की। हमने तसलीमा की पंकित्यों को छापा।


दूसरी बार रायपुर में दैनिक भास्कर के लिए बात की थी। रायपुर के पिकेद्ली होटल की वह शाम आज भी याद है। बातचीत का पूरा rikard टेप में है। अपनी पुस्तकालय से कभी निकाल ब्लोग पर आपकी सामने दूंगा, लेकिन कुल मिल कर यही कहूँगा की तसलीमा के साये में जो राजनीती की जा रही है वो गलत है।


मेरी तस्वीर




देख भाई इन्सान कैसी सूरत दी भगवान

11/20/2007

सामा चकेबा

काफ़ी अरसे बाद आज ब्लॉग की दुनिया मे घूमते हुए, सामा चकेबा के बारे में पढ़ने को मिला. देखते ही देखते गाँव की याद आ गई. बचपन की याद तो फिर कभी लेकिन सामा छकेबा के बारे में मुंबई में रहने वाली विभा रानी ने अपने ब्लॉग 'बस यूँ ही नहीं' पर कुछ यूँ बयान किया है. हूबहू आपके सामने है.... विनीत



सामा चकेबा

मिथिला में बहनें भी के लिए एक अद्भुत खेल खेलती हैं। कार्तिक सुदी ५ से इसे खेला जाता है और पूर्णिमा के दिन इसका समापन होता है। महिलाएं व लडकियां एक ग्रुप में इसे हर रात खेलती हैं। इसका पूरा आनंद इसे देखकर व इसमें शामिल होकर ही लिया जा सकता है।


द्वापर युग की कथा है। आगे इस अवसर पर गाए जानेवाले कुछ गीत भी हम इसमें देंगे) राजा जाम्बवंत ने अपनी बेटी जाम्बवंती की शादी श्री कृष्ण से की, जिससे उन्हें एक बेटा और एक बेटी हुए। इनके नाम थे- शाम्ब व शाम्बा।

शाम्बा का प्रेम चारुक्य नामक युवक से हुआ। चूडक नाम के चुगलखोर ने इसकी शिक़ायत कृष्ण से कर दी। उन्होंने शाम्बा को श्राप दे दिया कि वह चकवी पक्षी बनकर सारे समय आकाश में विचरती रहे। यह देख चारुक्य ने शिव की तपस्या कर के शाम्बा को फिर से मानव रूप का वर माँगा। मगर शंकर ने कहा कि भगवान कृष्ण का श्राप वे नहीं बदल सकते, मगर वे उसे भी चकवा पक्षी बनाकर आकाश में शाम्बा के साथ विचरने का वर दे सकते हैं। वे दोनों अब आकाश में विचरने लगे।

आकाश में निरंतर विचरने से उनकी हालत खराब होने लगी। सात भाइयों के पक्षी दल उन्हें दाना उड़ते उड़ते चुगाते और अपनी पीठ पर उन्हें बिठा कर खुद उड़ते रहते। बहन के इस हाल से शाम्ब बहुत दुखी था। वह वृन्दावन में जाकर भगवान विष्णु की आराधना करने लगा ताकि वह उन दोनों को मनुष्य रूप में वापस ला सके। चूड़क ने वृन्दावन में आग लगा दी।

शाम्बा का प्यारा कुत्ता झांझी अब शाम्ब के साथ रहता था। आग लगाते चूड़क का उसने मुँह नोच लिया और मुँह में पानी भर भर कर आग बुझाई। शाम्ब की तपस्या सफल हुई। पर कृष्ण ने उन्हें अपने राज्य में आने की अनुमति नहीं दी।

शाम्ब ने उन्हें राज्य के बाहर एक जुते खेत में ठहराया। उसके स्वागत में गीत गए- साम -चक , साम चक अबिहे हे, जोतला खेत में बैसिहे हे ... शाम्बा और चारुक्य को लोग दुलार से सामा- चकेबा कहने लगे। चकेबा की एक बहन थी- खरलीच।

भाई- भाभी को पाकर वह बड़ी प्रसन्न हुई। चूडक को शाम्ब ने श्राप दिया कि उसकी चुगलखोर प्रवृत्ति के कारण लोग उसका मुँह जलाएंगे और समाज में उसे कभी भी सम्मान नहीं मिलेगा।

शाम्ब ने यथा संभव धन धान्य देकर बहन- बहनोई को विदा किया। भाई- बहन के इसी उदात्त प्रेम को इस खेल में व्यक्त किया जाता है।