12/02/2008

अब जनता को जागना ही होगा : किरण बेदी

अब जनता को जागना ही होगा : किरण बेदी
मुंबई कांड ने हमारी सुरक्षा व्यवस्था की एक बार फिर पोल खोल कर रख दी है। यह युद्ध है जो फौज के साथ नहीं बल्कि आम नागरिकों के साथ है। आतंकवादी लडा़ई सेना के साथ न लड़कर आम लोगों के साथ लड़ रहे हैं। आम लोगों की जान ले रहे हैं। यह हमारी आन, बान, शान और इकोनॉमी पर चोट है। अमेरिका और ब्रिटेन की लड़ाई हमारी जमीन पर लड़ी जा रही है। आतंकवादी अमेरिकी नागरिकों का पासपोर्ट मांग रहे हैं। समुद्र के रास्ते वे भारत में प्रवेश कर रहे हैं, कालोनियों से निकलकर यहां आतंक फैला रहे हैं। उन देशों का कानून इतना सख्त हो चुका है कि आतंकवादियों को नई जमीन तलाशनी पड़ रही है। आतंकवादी अमेरिकियों का पासपोर्ट भारत के होटल में आकर इस कारण मांग रहे है क्योंकि वे उस देश में अपने कारनामों को अंजाम नहीं दे पा रहे हैं।
ऐसे मामले में हमें अमेरिका से सबक लेना चाहिए। कानून को सख्त से सख्त बनाना होगा क्योंकि 11 सितंबर के बाद किसी भी आतंकी संगठन की हिम्मत नहीं हुई कि वे अमेरिका में किसी भी घटना को अंजाम दे सकें। भारत में तो आतंकवाद की बात तभी खत्म हो जानी चाहिए थी जब संसद पर हमला हुआ था। इस मामले में न मजहब, न जाति, न भाषा- किसी भी तरह की बात नहीं होनी चाहिए। जब तक आतंकवाद को लेकर मजहब की बात होगी, तब तक यह खत्म नहीं हो सकता। जो खुद सुरक्षित हों, चाहे वे घर में हो या बाहर, वह दूसरे की सुरक्षा की बात क्या जानें। देश के सभी राजनेताओं को सिर्फ अपनी जान की फिक्र है। उनकी सुरक्षा में हमारे रणबांकुरे लगे रहते हैं।
अब देखना यह है कि सरकार और विपक्ष का कदम इस मामले में क्या होता है। वे कब तक तू-तू, मै-मैं की राजनीति करते रहेंगे और कब हम पर आते हैं। जीने का अधिकार सभी को है। सुरक्षा का अधिकार सभी को है। हमारे बच्चे वापस घर लौट सकें, बाहर आराम से घूम फिर सकें, यह व्यवस्था होनी चाहिए। आतंकी घटनाएं इस हद तक बढ़ गई है कि अब जनता को जागना ही होगा। समाज को जागना होगा। नॉन पालिटिकल सिविल सोसाइटी को इस मामले में जागरूक होना होगा। इसे चुनावी मुद्दा न बनाकर एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाना होगा। वर्तमान सरकार और विपक्ष को रिजेक्ट करना होगा। इनको वोट नहीं मिलना चाहिए। वोट दें, लेकिन वोट न हो। चूंकि हमारे यहां राइट टू रिजेक्ट का अधिकार नहीं है, इस कारण वोट डालें लेकिन रिजेक्ट के साथ। पता चलेगा वोटिंग तो हुई लेकिन किसी को वोट नहीं मिला।
समय आ चुका है अब न तो सरकार को और न ही विपक्ष को और समय दिया जाना चाहिए। इस संसद ने हमें फेल किया है। पांच साल में इन लोगों ने कुछ नहीं किया। किसी राज्य में आतंकियों की ट्रेनिंग हो रही है, किसी राज्य में इनका घर बना हुआ है। पूरा का पूरा कस्बा आतंकियों के गढ़ में तब्दील हो चुका है। आम लोगों को अब जगना होगा। तीसरी आवाज उठानी होगी। नए संसद का निर्माण करना होगा। नए चेहरे संसद में लाने होंगे, जो काम कर सकें।
राजनेताओं की यह चाल है कि वे हमेशा पुलिस को झूठा ठहराते हैं। हमारे जांबाज मारे जा रहे हैं। टीम लीडर मरता जा रहा है। अगर टीम लीडर ही नहीं रहे तो जीतेगा कौन? सुधार प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। मैंने ऐसी ही दो साल पहले नौकरी नहीं छोड़ी थी। ये नेता कहते कुछ हैं और करते हैं कुछ। पद्मनाभैया, मलियामह रिपोर्ट का क्या हुआ? इस देश में भी फेडरल एजेंसी बने, हर स्तर पर पुलिस को ट्रेनिंग दी जाए। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में आदेश दिया था। मैं जिस वक्त महानिदेशक थी, मैंने एक एफिडेविट भी जमा किया था। उस पर अभी तक कुछ भी अमल नहीं हुआ। मंत्रालय की हालत यह है कि कोई काम ही नहीं करना चाहता। अपने कार्यकाल में गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद एफिडेविट जमा नहीं किया, मुझे सीधे रजिस्ट्रार के पास जमा करना पड़ा था।
(सुश्री बेदी पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं)
प्रस्तुति: विनीत उत्पल
यह लेख एक दिसम्बर 2008 को राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित हुआ है

3 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

amerika or hindustan me yahi to fark hai. narayan narayan

Pramendra Pratap Singh said...

बेदी जी सत्‍य ही कह रही है, ये सरकार न‍िक्कमी है, अब इसे बदलनी है।

Unknown said...

neek achhi jaagtah ta neek rahat...magar sawaal achhi ki janta jaagat?