3/31/2009

मुद्दा : भूख के आगोश में खत्म होती जिंदगी

भूख के आगोश में खत्म होती जिंदगी
भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए कुपोषण व भुखमरी जैसी समस्याएं सालों से बड़ा सिरदर्द बनी हुई हैं। भारत के करीब छह सौ से अधिक जिलों में जिस कदर कुपोषण के मामले सामने आ रहे हैं, वह गंभीर है। पूरे विश्व में हर दिन करीब 18 हजार बच्चे भूखे मर रहे हैं। विश्व की करीब 85 करोड़ आबादी रात में भूखे पेट सोने के लिए विवश है। पूरी दुनिया में करीब 92 करोड़ लोग भुखमरी की चपेट में हैं जबकि भारत में 42।5 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
यह बहुत ही चिंताजनक है कि पूरे विश्व में 60 फीसद बच्चों की मौत भूख से होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 12 लोगों में एक व्यक्ति कुपोषण का शिकार है। वर्ष 2006 में भूख या इससे होने वाली बीमारियों के कारण 36 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। भुखमरी की विकराल स्थिति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 2007 तक पूरे विश्व में करीब 92 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार थे जबकि 1990 में इनकी संख्या 84 करोड़ थी। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने इस मामले पर गंभीरता बरतते हुए 2000 में तय लक्ष्यों में भुखमरी और गरीबी के शिकार लोगों की संख्या 2015 तक आधी करना शामिल किया है। भारत में भुखमरी और कुपोषण के मामले की आ॓र नजर डालें तो यहां स्थिति और भी भयावह है। पिछले महीने वर्ल्ड फूड प्रोग्राम द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के आठ राज्यों में ग्रामीण महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान खून की कमी का सामना करना आम बात हैं। दुनिया का हर चौथा भूखा व्यक्ति भारतीय है। वाशिंगटन स्थित मिस मेनन नामक संस्था ने अपने वैश्विक भूख सूचकांक में भारत को करीब दो दर्जन अफ्रीकी देशों से नीचे स्थान दिया है। पूरी दुनिया में जितने बच्चे कुपोषण से पीड़ित हंै उनमें से आधे से अधिक बच्चे भारत में हैं। संस्था की आ॓र से जारी शोध में कहा गया है कि चीन के मुकाबले भारत में स्तनपान कराने वाली महिलाओं में कुपोषण होने के कारण बच्चों में खून की कमी के मामले अधिक आ रहे हंै। सूचकांक में चेतावनी दी गई है कि भारत के मध्यप्रदेश में समस्या काफी विकराल है और इसकी स्थिति इथोपिया से भी बदतर है। इस रिपोर्ट में चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि भारत के महाराष्ट्र व गुजरात जैसे राज्यों में भुखमरी की समस्या और गंभीर है जहां आर्थिक विकास काफी हुआ है। भारत में कुपोषण की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां राजधानी दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे अधिक है वहीं करीब 40 फीसद बच्चे पांच साल से अधिक जीवित नहीं रह पाते। अधिकतर बच्चों की लंबाई अपनी उम्र के मुकाबले कम है जबकि 26 फीसद बच्चों का वजन कम पाया गया। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ भारत में करीब 20 करोड़ लोग खाली पेट रात में सोने के लिए विवश हैं।
पिछले दिनों न्यूयार्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे विश्व के तमाम देशों की तुलना में भारत में वृहत पैमाने पर बाल पोषण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके बावजूद भारत की हालत चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तुलना में चीन की स्थिति बेहतर है और वहां पांच साल से कम उम्र के करीब सात फीसद बच्चों का वजन उनके उम्र के मुकाबले कम है। इस मामले में विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ दो साल तक के बच्चों को पर्याप्त पौष्टिक भोजन के लिए लालायित होना पड़ता है।अनाज के दामों में गिरावट आई है पर अनाज संकट का अंत नहीं हुआ है। पूरे विश्व के साथ-साथ भारत की स्थिति लगातार भयावह होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की तमाम योजनाओं के साथ-साथ केंद्र सरकार की योजनाओं का फायदा किसे मिल रहा है, यह एक अहम सवाल है। हर रोज लोग भूख और कुपोषण से मर रहे हैं पर सरकारी रिकार्ड कुछ और ही बयां करते हैं। महिलाओं, बच्चों के साथ-साथ गरीबों को पौष्टिक भोजन की बात तो दूर, दो जून की रोटी तक नसीब नहीं होती। राजधानी दिल्ली की सड़कों से गुजरते हुए कुपोषित बच्चों का भीख मांगते दिख जाना आम है। दरअसल, स्वतंत्रता प्राप्ति के साठ साल बीतने के बाद भी समाज के हाशिए पर रहे लोगों की हालत में कोई सटीक सुधार नहीं हुआ है। देश के कई राज्यों में सरकार द्वारा चलायी जाने वाली ‘नरेगा’ जैसी योजनाएं किस कदर लोगों को सालों दर साल से भूखे पेट सोने वाले लोगों को उनकी परिस्थितियों से निजात दिलाने में सक्षम हो रही हैं, यह सवाल आम लोगों के सामने है तो देश के नीति निर्धारकों के सामने भी।

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