9/12/2009

ब्रेड पकौडे नान स्टाप

दिल्ली का पाश इलाका. एक तरफ जेएनयू का ओल्ड कैम्पस तो दूसरी तरफ आईआईटी कैम्पस का विस्तृत इलाका. इसी बीच स्थित है बेर सराय, जहाँ इंजीनियरिंग से लेकर सिविल सर्विस की तैयारी करने वाले छात्र तक, घर से मीलों दूर, हास्टल या छोटे-छोटे कमरे लेकर रहते हैं। उन्हें न तो खाने की फ़िक्र रहती है और न ही सोने की। पढाई और तैयारी का बोझ उन पर इस कदर होता है कि वे चाय बनाने से लेकर खाना बनाने तक में परहेज करते हैं। बस एक ही धुन उनके सर पर होती है, कुछ कर दिखने की। अब जब धुन कुछ कर गुजरने की हो तो जाहिर है किसी और काम में मन कहाँ लगेगा, लेकिन रात बीतते सुबह चाय की तलब और भूख यहाँ रहने वाले छात्रों को 'शर्माजी टी स्टाल' तक पहुँचने के लिए मजबूर करती है।

करीब डेढ़ दशक से संकरी गलियों में बसी चाय और नास्ता की यह दुकान इन छात्रों के लिए न सिर्फ़ भूख और प्यास मिटने बल्कि दिमाग को तरोताजा करने की जगह भी बन चुकी है। सुबह करीब पॉँच बजे से खुलने वाला यह चाय स्टाल देर रात करीब एक बजे तक खुला रहता है। खासतौर पर अपनी चटनी के लिए मशहूर शर्माजी कि इस दुकान के ब्रेड पकौडों का सिविल सेवा की परीक्षा पास कर चुके कितने ही नौकरशाह आज भी नही भूले हैं। आज भी कई बार भूले-भटके वे इन गलियों में पहुँच जाते हैं।

सुबह करीब पॉँच बजे से खुलने वाला यह चाय स्टाल देर रात करीब एक बजे तक खुला रहता है। खासतौर पर अपनी चटनी के लिए मशहूर शर्माजी कि इस दुकान के ब्रेड पकौडों का सिविल सेवा की परीक्षा पास कर चुके कितने ही नौकरशाह आज भी नही भूले हैं।

बेरसराय गाँव की तंग गलियों में यह छोटी सी दुकान चला रहे सीएल शर्मा अतीत को झांकते हुए कहते हैं, 'मैं सरकारी नौकरी करता था, लेकिन जब मेरा तबादला दिल्ली से गुवाहाटी कर दिया गया तो मैं वहां नही जा पाया। उन दिनों बेटे का पैर ख़राब था, जिसका इलाज दिल्ली में चल रहा था। आखिरकार अपने बेटे और परिवार के खातिर मैंने सरकारी नौकरी छोड़ दी। तब मेरे पास पूंजी का अभाव था। जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले के एक गाँव में मेरा घर था, इसलिए वहां लौट नहीं सकता था। बस... मजबूरियां थी इसलिए यह दुकान शुरू की।

अपने यहाँ की मशहूर चटनी का राज खोलते हुए वह कहती हैं, 'हरी चटनी बनाना मैं बचपन से जानता था। फ़िर भी, हमेशा कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करता रहता था। वह आज भी नही भूले वह दिन, जब यह दुकान खोली थी तब यहाँ नास्ते की एक भी दुकान नहीं आज दर्जनों ढाबे यहाँ खुल चुके हैं. फिर भी इनके हाथो से बनी स्वादिष्ट हरी चटनी के साथ ब्रेड-पकौडों स्वाद चखने का मौका कोई भी मिस नही करना चाहता।

वर्ष २००५ में सिविल सेवा में तीसरे रैंक पर रहे रणधीर कुमार कहते है कि जो छात्र बेरसराय में रह चुके हों, वे शर्माजी की चाय और ब्रेड-पकौडों का स्वाद भला कैसे भूल सकता है। वहीँ, सीए फाइनल के छात्र राज के अनुसार साबूदाने से बने यहाँ के चटपटे नमकीन का स्वाद वह कभी नही भूल सकते। साबूदाने से बने इस चटपटे नमकीन 'मनोरंजन' को बच्चे भी कम पसंद नही करते। हालाँकि यहाँ के ब्रेड पकौडे तो सालों से सबकी पसंद है ही। 'लन्दन की मीडिया ने कई साल पहले यहाँ आकर मेरा साक्षात्कार लिया था', कहते हुए चमक उठती हैं शर्माजी की आँखें। वह खुश हैं की देश के सर्वष्ठ प्रतियोगिता की तयारी का रहे छात्रों के संपर्क में रहते हैं। उन्हें बहुत खुशी होती है जब कोई छात्र अपना मुकाम पा लेता है।

क्या कभी लौटकर वे आपके पास आते हैं ? पूछने पर शर्माजी कहते हैं, 'बिल्कुल।' मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है की ऐसे कितने ही लोग हैं, जो प्रतियोगिता परीक्षा पास करने के बाद या लंबे समय तक देश की सेवा में जुटे रहने के बाद भी इधर से गुजरते हुए हमारे पास आए हैं। अपनी खुशी का इजहार मैं शब्दों में नही कर सकता की इतने सालों बाद भी मेरे हाथों का स्वाद उन्हें मेरे पास खिंच लता है।' ऐसे किसी भी छात्र से बाद में आपको किसी भी तरह की मदद भी मिली? सवाल के जवाब में वह कहते हैं, 'मैंने आज तक किसी से कुछ भी नही माँगा।'

अपने हुनर पर शर्माजी को इतना यकीं है की वे अक्सर दुकान के लिए नई-नई चीजें बनने और प्रयोग करना बेहद अच्छा लगता है। मेरे यहाँ खाने की कितनी वेरायटी आपको मिल जायेगी। तो यदि आप भी जिन्दगी में कुछ कर दिखने के लिए बेरसराय में रहकर परीक्षा की तैयारी कर रहे हों तो हाथों से बने इन स्वादिस्ट व्यंजनों और चाय की चुस्की लेना न भूलें।

हाँ, एक जरूरी बात। मंदी का असर भले ही आपको चारों ओर नजर आ रहा हो, लेकिन शर्माजी को महंगाई की मर ने आज भी परेशान नही किया है। आज भी उनकी दुकान में ब्रेड-पकौडे, मालपुवे, मनोरंजन की कीमत मात्र पांच रूपये और समोसे और कचौडी की कीमत चार रूपये ही रखी गई है। इससे पहले की आप यहाँ पहुंचें, खड़े होकर खाना सीख लें, क्योंकि यहाँ बैठने के लिए कुर्सी नही मिलेगी। आपको खड़े होकर या फ़िर सीधी पर बैठकर ही पेट पूजा करनी होगी.

2 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अब तो लगता है खाना ही पड़ेगा.

विवेक रस्तोगी said...

दिल्ली के नये ठिये के बारे में पता चला आज हमें । :)