9/15/2009

हिंदी लेखक भी होंगे बेस्टसेलर :अपूर्व जोशी, संपादक, पाखी

हिन्दी साहित्य का बाजार काफी व्यापक है। पिछले एक साल के दौरान हमारी पत्रिका को आम पाठकों ने जिस कदर सराहा, उससे काफी उत्साहवर्धन हुआ है। मेरा मानना है कि यदि हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं को देखें तो सामग्री का जो स्तर पाठकों तक पहुंचना चाहिए, वह उन तक नहीं पहुंच पा रहा है। साथ ही कोई भी पत्रिका आर्थिक दृष्टि से संबल नहीं हो पा रहा है।

भारत बाजार में तब्दील हो चुका है, उस बाजार को पकड़ने के लिए भाषा भी पकड़नी होगी।

जिस तरह पाठकों का रूझान है उसमें यदि पब्लिशर्स आर्थिक तौर से मजबूत हो जाएं तो एक लाख प्रतियां भी कम ही होंगी। बड़े घराने जो साहित्यिक पत्रिकाएं निकालते भी हैं उनकी मार्केटिंग काफी कमजोर है। इसके अलावा अखबारों या महिलाओं से संबंधित पत्रिकाओं जैसे विज्ञापन साहित्यिक पत्रिकाओं को नहीं मिल पाते हैं। आम पाठकों तक पत्रिका को पहुंचाने का सामर्थ्य भी इन पाठकों के पास नहीं है। आज का भारत बाजार में तब्दील हो चुका है, उस बाजार को पकड़ने के लिए भाषा भी पकड़नी होगी। हिंदी के प्रकाशन जगत में अंग्रेजी प्रकाशकों का आना मायने रखता है। क्योंकि वे उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो विज्ञापन ला सकता है। उनका मिशन पत्रिका चलाना नहीं है बल्कि व्यापार करना है। ‘हंस’ या ‘कथादेश’ का प्रकाशन व्यापार करने के लिए शुरू नहीं हुआ। वैसे मुझे बाजार में हिंदी के दखल को देखते हुए लगता है कि जल्द ही वह समय आएगा जब हिंदी लेखकों की रचनाएं भी बेस्ट सेलर होंगी।

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