8/27/2010

तस्करों के जाल में फंसा देश

मानव तस्करी के मामले में भारत की जो स्थिति है, उसे नजरअंदाज कर पाना नामुमकिन है। दुनिया के 177 देशों की स्थिति पर अध्ययन के बाद यूएस स्टेट डिपार्टमेंट रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में मानव तस्करी के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। हालांकि पिछले साल के मुकाबले इस साल इन देशों में 30 फीसद का इजाफा हुआ है जिनमें खासतौर से अफ्रीका, एशिया और पश्चिमी एशिया के देश शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ भी मानता है कि पूरे विश्व में मानव तस्करी का कारोबार 32 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर चुका है। वहीं ग्लोबल सिटिजंस ट्रस्ट के मुताबिक, भारत में मानव तस्करी का अवैध कारोबार करीब 3,500 करोड़ है।
भारत में ईंट-भट्ठों, चावल मिलों, फैक्टरियों के अलावा गैर सरकारी संस्थानों में इनकी संख्या जबर्दस्त है। मानव तस्करी के मामले में बंधुआ मजदूर, यौन तस्करी, प्रवासी मजदूर, घरेलू नौकर, बाल यौन तस्करी आदि शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत पुरूष, महिलाओं और बच्चों की तस्करी की जाती है और इस काम के लिए संपर्क देश के तौर पर भी उसका इस्तेमाल किया जाता है। यही कारण है कि भारत उपमहाद्वीप में हर साल करीब दो लाख लोगों की तस्करी होती है। पिछले साल यूएस स्टेट डिपार्टमेंट रिपोर्ट में कहा गया था कि मानव तस्करी के आरोप में 1970 लोग पकड़े गए थे जो आंध्रप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, गोवा और पश्चिम बंगाल से थे जिनमें से महज 30 लोगों को ही दोषी पाया गया।
कभी राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी हायतौबा मचाई थी कि देश के 378 जिलों के 62.5 फीसद इलाकों में महिलाओं और बच्चों की तस्करी हो रही है जिसके तहत उनका यौन शोषण किया जाता है। आंकड़े बताते हैं कि पूर्वोत्तर भारत में दस हजार से भी अधिक लोग हर साल तस्करी के जरिए लाए जाते है। चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन की रिपोर्ट बताती है कि हर साल अवैध रूप से 6-10 हजार लड़कियां नेपाल से भारत लाकर वेश्यावृति में धकेल दी जाती हैं। वहीं, बांग्लादेश से आने वालों के आंकड़े इससे कम नहीं हैं। यही हाल आंध्रप्रदेश से लेकर पंजाब और हरियाणा का भी है। इसकी जीता-जागता प्रमाण हरियाणा में लड़कियों की कमी है।
जिस देश में लाखों वकील हों और हर साल हजारों ग्रेजुएट विभिन्न संस्थानों से निकल रहे हों, वहां काफी कम संख्या में मानवाधिकार कानून और तस्करी को रोकने से संबंधित कानूनों का अध्ययन न किया जाना कौतूहल पैदा करता है। कभी इस मामले में कोई समिति बनती है तो कभी नियम-कानू का जलजला दिखाया जाता है। हकीकत यह होता है कि नियम-कानून महज एक सरकारी झुनझुना बन जाता है और मानव की तस्करी पुलिस-प्रशासन के नाक के नीचे खुलेआम चलता रहता है। इसी साल कामनवेल्थ गेम्स भी है और माना जा रहा है कि इस मौके पर मानव तस्करी का अवैध कारोबार आसमान छू रहा होगा। और तो और पिछले कई सालों से काफी संख्या में मानव तस्करी के मामले सामने आने के बावजूद इस पर अंकुश लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत इस मामले में पूरी तरह कटिबद्ध है कि मानव तस्करी पर अंकुश लगे।
पिछले साल केंद्रीय गृहमंत्री ने मानव तस्करी को रोकने के लिए स्पेशल सेल बनाने की बात कही थी लेकिन कितना अमलीजामा पहनाया जा सका, यह कहीं भी किसी कोने से नहीं दिख रहा है। और तो और सरकार अनैतिक तस्करी (निरोधक) अधिनियम 1956 में संशोधन पर भी विचार कर रही थी। देश की स्थिति यह है कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कानून कहीं से भी मानव तस्करी को रोकने के लिए कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि मानव तस्करी को लेकर न तो कोई पार्टी गंभीर है और न ही कोई संगठन ही आवाज उठाता है। हालत काफी बदतर है, बावजूद इसके किसी के पास इतनी दूरदृष्टि तक भी नहीं है कि तस्कर के हाथों मुक्त कराए गए लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था की जाए , साथ ही जिंदगी की नई दिशा भी।

8/10/2010

सोशल नेट्वर्किंग से घटी दूरियां

अरस्तू ने कहा था, ‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।’बाजार के दौर में उनकी बात बेईमानी लगती थी लेकिन इंटरनेट की दुनिया ने यह साबित कर दिया है कि अरस्तू ने ठीक ही कहा था। रिसर्च बताते है कि इंटरनेट से जुड़े लोग और कामों के बनिस्पत सोशल नेट्वर्किंग पर अधिक समय बिताते है। अमेरिका में पिछले साल के मुकाबले इस साल 43 फीसद लोगों ने ज्यादा समय बिताया। नीलसन कंपनी द्वारा कराए गए सव में पाया गया कि ऑनलाइन गेम खेलने का नंबर दूसरा और ई-मेल भेजने में समय खर्च तीसरा है। एक-दूसरे से बातें करने, आसपास की घटनाओं को शेयर करने और किसी भी मुद्दे पर बेबाक अपनी राय रखना लोगों कर शगल बन चुका है। ऑनलाइन खरीदारी भी लोग करते है लेकिन इसमें रुचि भी काफी कम लोगों ने दिखाई है।
जून, 2009 में सोशल मीडिया यानी नेटवर्क मसलन फेसबुक, ट्विटर, आकरुट आदि पर ऑनलाइन बिताया गया समय 15.8 फीसद से बढ़कर जून, 2010 में 22.7 फीसद हो गया। ऑनलाइन गेम खेलने में पिछले साल यह आंकड़ा 9.3 फीसद था जिसमें एक फीसद की वृद्धि हुई और यह 10.2 फीसद हो गया। दिलचस्प बात तो ई-मेल भेजने को लेकर है। पिछले साल यह आंकड़ा 10.5 था जिसमें करीब दो फीसद की गिरावट आई और यह 8.3 फीसद हो गई। और तो और लोगों ने इन सोशन नेटवर्क के जरिए ही गेम भी खेला। शोध में यह बात भी सामने आई कि ऑनलाइन गेम्स को ‘जाइंगास फार्मविल’ जैसे फेसबुक की एप्लिकेशंस के जरिए खेला गया। वर्तमान दौर में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अधिकतर लोग अपने मोबाइल के जरिए इंटरनेट सìफग करने लगे है। यही कारण है कि पर्सनल कम्प्यूटर या लैपटॉप का प्रयोग कम होने लगा है। यह भी गौरतलब है कि ऑनलाइन वीडियो और सर्च करने में भी लोग काफी समय बिता रहे है। हालांकि यह और बात है कि पिछले साल की 3.5 फीसद से इस साल 3.9 फीसद तक की बढ़त के बावजूद ऑनलाइन वीडियो देखने का औसत बेहद कम 1.15 घंटा प्रति व्यक्ति प्रतिमाह है। ऑनलाइन वीडियो देखने के समय में 70 फीसद योगदान यू-टूब का है।
गूगल के आने और कई सुविधा मुहैया कराए जाने से छा जाने के कारण याहू जैसे इंटरनेट पोर्टलों पर लोग काफी कम समय खर्च कर रहे है। यह बात गूगल के अधिकारी अच्छी तरह जानते है। तभी तो गूगल जल्द ही सोशल गे¨मग पर काफी पैसा खर्च करने का प्लॉन कर रहा है। प्लॉन के मुताबिक ‘होनचो जिंयांगा’ नामक सोशल गेम उपलब्ध कराया जाएगा जिसके जरिए लोग ऑनलाइन फर्मविला, माफिया वार्स सहित दूसरे गेम खेल सकेंगे। वहीं दुनिया में देखते ही देखते अपने साम््राज्य का जलवा बिखेरने वाला फेसबुक भी कई साइटों को शमिल कर चुका है और कर रहा है। इसमें फोटो शेयरिंग सर्विस की सुविधा भी मुहैया कराई गई है और अनुमान लगाया जा रहा है कि हर महीने तीन अरब फोटो डाउनलोग किए जा रहे है। और फोटो शेयरिंग साइटों के मुकाबले फेसबुक का दायरा तीन गुना अधिक तेजी से बढ़ रहा है। जहां फेसबुक के जरिए 1.8 करोड़ नए लोग फोटो शेयर करने के लिए जुड़ रहे है वहीं फ्लिकर डॉट कॉम से 19 लाख लोग ही हर महीने जुड़ते है वहीं पिकासा वेब गूगल डॉट कॉम से 16 लाख नए लोग जुड़ रहे है।

8/03/2010

अंधी का रोल करना चुनौती: श्रृति झा

अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई और थियेटर करते-करते कब सीरियल करने लगी, यह श्रृति को भी पता नहीं चला। ‘धूम मचाआ॓ धूम’, ‘जिया जले’, ‘ज्योति’ और ‘शौर्य और सुहानी’ जैसे सीरियलों में काम कर छोटे पर्दे के जरिए घर-घर में पहचानी जाने वाली श्रृति झा इन दिनों इमैजिन टीवी पर आ रहे सीरियल ‘रक्त संबंध’ में लीड भूमिका में है। इसमें वह आंखों की रोशनी खो चुकी ‘संध्या’ का रोल निभा रही है। श्रृति से विनीत की बात:-
-अंग्रेजी साहित्य की स्टूडेंट थी, एक्टिंग में कैसे आ गईं?
-स्कूल-कॉलेज में थियेटर किया करती थी। दिल्ली विश्वविघालय के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज से जब ग्रेजुए शन कर रही थी तभी थियेटर ग्रुप ज्वाइन किया था। कॉलेज के ड्रामा सोसाइटी में शामिल हुई थी और ए क साल प्रेसिडेंट भी बनी थी। उस दौरान काफी थियेटर किया और इससे संबंधित वर्कशॉप में भाग भी लिया।
-आपका पैतृक घर कहां है, क्या और कोई सदस्य एक्टिंग के फील्ड में है?
-मेरा पैतृक घर बिहार के दरभंगा जिले के डरहार नामक गांव में है। पापा फर्स्ट फ्लाइट कोरियर में ए मडी (नेपाल) में हैं। परिवार का कोई भी सदस्य ए क्टिंग या फिल्म प्रोडक्शन की फील्ड में नहीं है।
-इस मुकाम तक पहुंचने में किस तरह संघर्ष किया?
-पूरे करियर में जहां तक पहुंची हूं, माता-पिता का पर्याप्त सहयोग रहा। कभी भी किसी काम के लिए मना नहीं किया। शुरूआत में थोड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा लेकिन अब जब मुझे टीवी पर देखते हैं, तो सबको अच्छा लगता है।
-किन-किन सीरियलों में काम किया?
-‘धूम मचाआ॓ धूम’, ‘जिया जले’, ‘ज्योति’ और ‘शौर्य और सुहानी’ में अभिनय करने का अवसर मिला। सीरियल ‘जिया जले’ और ‘शौर्य और सुहानी’ में लीड रोल था।
-इमैजिन टीवी पर आने वाले सीरियल ‘रक्त संबंध’ में किस तरह का रोल है?
-‘रक्त संबंध’ में अंधी लड़की ‘संध्या’ का रोल कर रही हूं। वह पांच बहनों में सबसे छोटी है। उसकी शादी के दिन ही उसके पिता खुदकुशी कर लेते हैं और फिर पांचों बहनों का परिवार भी है।
-एक अंधी लड़की का रोल करना कितना मुश्किल है?
-यह रोल करना खुद में चुनौती थी लेकिन मैंने इसी स्वीकारा। इससे पहले भी मैंने मेंटली अनसाउंड का किरदार भी निभाया है। ‘संध्या’ की आ॓र से देखें तो आंखों में रोशनी नहीं होने के कारण उनके लिए हर चीज खूबसूरत है। वह अपने दायरे में सुंदरता को परिभाषित करती है।
-इस सीरियल में और कौन-कौन हैं?
-इसमें मेरे अलावा, किटी कृष्णमूर्ति, सायंतनी घोष, गुनगुन, भार्गवी चिरमूले, सोनाली निकम, मोहन अगाशे, सचिन श्राफ, ध्रुव भंडारी आदि हैं।
-भविष्य में किस तरह का काम करना पसंद करेंगी?
-जहां काम मिलेगा, अच्छा काम मिलेगा, वह जरूर करूंगी।
-क्या-क्या शौक हैं आपके?
-पढ़ने का शौक है, फिल्में भी देखती हूं। क्लासिक और ऑटोबायोग्राफी पढ़ना काफी पसंद है। अमिताभ घोष की किताबें मुझे काफी अच्छी लगती हैं। आजकल अबरार अल्वी की ‘टेन ईयर वीथ गुरूदत्त’ पढ़ रही हूं।
-किसी से रिलेशन में हैं?
-मुझे अकेले रहना अच्छा लगता है और संघर्ष करना भी। फिलहाल मैं किसी के साथ कोई ‘रिलेशन’ में नहीं हूं।