9/17/2010

न ये चांद होगा न तारे रहेंगे.. एच.एस.बिहारी

’न ये चांद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे‘ गीत भले ही लोगों के जज्बातों को सामने लाने में सक्षम हो लेकिन यह बात भी सच है कि लोग गीत गुनगुनाते जरूर है मगर यह जानने की कोशिश नहीं करते कि उसे लिखा किसने है। मसलन ’न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे..‘, ’देखो, वो चांद छुप के करता है, क्या इशारे..‘, ’सुभान अल्ला, हंसी चेहरा, ये मस्ताना अदाएं/ खुदा महफूज रखे हर बला से‘ आदि को ही लें, आज भी गुनगुनाए जाते है। इन गीतों को लिखने वाले थे एस.एच. बिहारी। वे थे तो सादा तबीयत सा दिखने वाले लेकिन ऐसे रूमानी थे कि अलग-अलग लफ्जों में अलग- अलग खूबसूरत रंगों में रंगे उनके गीत हमें आज भी हसीन अहसास देते है।

बिहार के आरा जिले में 1922 में शम्सउल हुदा बिहारी की पैदाइश हुई। कॉलेज की पढ़ाई कोलकाता में हुई जहां प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की। वहां वे बंगाली भी सीख गए और पहले से हिंदी और ऊदरू तो आती ही थी। उस दौर में फुटबॉल इतने बेहतरीन खेलते थे कि मोहन बगान की टीम में भी चुने गए। लिखने-पढ़ने और शायरी का शौक भी था। बंबई में एक भाई पहले से रहते थे तो फिर क्या था अपनी मंजिल की तलाश में 1947 में बंबई पहुंच गए। काफी मशक्कत करने के बाद काम मिला। कई बार भूखे पेट सोने के लिए भी विवश हुए।

एच एस बिहारी भले ही सीधे सादे से दिखने वाले थे लेकिन उनमें कई ऐसे गुण थे जो उन्हें दूसरों से अलग पहचान दिलाते थे

1950 में फिल्म आई ’दिलरूबा‘ और इसका एक गीत था ’हटो-हटो जी आते है हम‘। बस यहीं से इनकी फिल्मी करियर की शुरुआत हुई लेकिन न ही यह गीत लोगों की जुबान पर चढ़ सका और न ही किसी की नजर में एस.एच.बिहारी ही। लेकिन इसी साल आई फिल्म ’निदरेष‘ और इसके बाद ’बेदर्दी‘, ’खूबसूरत‘, ’निशान डंका‘ और 1953 में ’रंगीला‘ में भी इन्होंने इक्का-दुक्का गीत लिखें जो लोगों की जुबां पर छाने में नाकाम रहे। 1950 के दौर में हेमंत दा के साथ उनके असिस्टेंट के तौर पर उस समय रवि काम कर रहे थे। जब वे स्वतंत्र रूप से संगीत देने लगे, तो उन्होंने भी बिहारी से नाता जोड़ा। 1954 में आई फिल्म ’शर्त‘ जिसका निर्माण किया था शशिधर मुखर्जी। इसमें संगीत था हेमंत कुमार का और गीत लिखे थे एस.एच. बिहारी और राजेंद्र कृष्ण ने। इसका गाना ’न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे/मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे‘ जबर्दस्त हिट रहा।

1954 से 1957 के बीच आई फिल्म ’डाकू की लड़की‘, ’बहू‘, ’अरब का सौदागर‘, ’एक झलक‘ और ’यहूदी की लड़की‘ में इन्होंने गीत लिखा। 1960 के दशक में वे संगीतकार ओ.पी. नैयर के साथ जुड़ गए और उसके बाद एक से एक बेहतरीन गीत उन्होंने दिए। नैयर साहब उन्हें ’शायर- ए-आजम‘ कहा करते थे। दोनों ने मिलकर ’रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना‘, ’आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया/ मै तो आगे बढ़ गई, पीछे जमाना रह गया‘, ’मेरी जान तुम पे सदके एहसान इतना कर दो‘ जैसे सदाबहार गीत फिल्मी जगत को दिए जिसे आज भी याद किया जाता है। फिर आशा भोसले और मोहम्मद रफी ने अपनी पुरकशिश आवाज से इनकी गीतों को अमर करने का काम किया।

1971 में रिलीज हुई फिल्म ’बीस साल पहले‘ जिसका गीत ’भूल जा तू वो फसाने, कल के गुजरे जमाने‘ आज भी लोग याद करते है। ’कश्मीर की कली‘ का गीत ’तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया‘ या फिर ’किस्मत‘ का गीत ’कजरा मोहब्बत वाला, अखियों में ऐसा डाला‘ आज भी गुनगुनाए और सुने जाते है। बिहारी ने संगीतकार श्यामसुंदर, शंकर-जयकिशन और मदन-मोहन के साथ काम किया तो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और बप्पी लाहिड़ी के लिए भी गीत लिखे। वे न तो साहिर की तरह विद्रोही थे और न शकील की तरह जज्बाती। उनका नेचर न तो शैलेंद्र की तरह था जो सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था और न ही मजरूह की भांति जिन्होंने शोख नगमे ही दिए। उनका मानना था जिस तरह जिंदगी में मुश्किलात है वैसी ही हालत फिल्मी दुनिया की भी है। 25 फरवरी, 1987 को हार्ट अटैक होने से उनकी मौत हो गई और वह सदा के लिए अलविदा कह गए।

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