11/10/2010

भानुमति का पिटारा ई-साहित्य

इंटरनेट की दुनिया में जैसे-जैसे हिन्दी ने अपनी पैठ बनाई, वैसे-वैसे वे लेखक भी सामने आए जो कभी पत्र-पत्रिकाओं के अलावा किताबों के जरिए पाठकों तक पहुंचते थे। खासकर तब, जब हिन्दी में ब्लॉग लिखा जाने लगा तो शुरुआती दौर में हिन्दी के तथाकथित ठेकेदार और मठाधीश इससे दूरी बनाए हुए थे। वे खाते तो हिन्दी के थे, मगर फ्री में हिन्दी ब्लॉग लिखना उन्हें नागवार गुजरता था। समय के साथ जिस तरह परिस्थितियां बदलीं, उसी तरह उन लोगों की मानसिकता भी। बावजूद इसके, हिन्दी के मूर्धन्य विद्वानों, कॉलेज शिक्षकों और हिन्दी के नामी-गिरामी पत्रकार आज भी इससे दूर-दूर है। ऐसे में ’ज्ञानोदय‘ विवाद ने कई ब्लॉगरों को पहचान दी और हिन्दी प्रेमी उन ब्लॉगों पर आने-जाने के साथ गंभीरता से भी लेने लगे। 
हिन्दी साहित्य के कंटेंट के साथ पहले से कई वेबसाइट मौजूद थे, जो पाठकों के सामने कहानी, कविता, लेख, नाटक, संस्मरण आदि को पेश करते रहे। ब्लॉग की दुनिया भी इससे अछूती नहीं रही। फिर भी मुट्ठीभर हिन्दी ब्लॉग जरूर है, जहां पोस्ट पढ़ने के बाद पाठकों को संतुष्टि मिलती है। सब जगह अपनी-अपनी भड़ास है, दूसरों को कोई क्यों सुने या लिखे। गौर करने वाली बात यह भी है कि भले ही आज के दौर में साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र दिल्ली को माना जाता है, लेकिन वचरुअल स्पेस में तस्वीर अलग है। ’अनुभूति‘ और ’अभिव्यक्ति‘ नामक साहित्यिक पत्रिका का संचालन दुबई से की जाती है तो ’कल्पना‘ कनाडा से संचालित होता है। 
हिन्दी साहित्य पर तो कई ब्लॉग और वेबसाइट है, मसलन प्रतिलिपि, रचनाकार, साहित्य-शिल्पी, कविता कोश, गद्यकोश, कबाड़खाना, अनुनाद, अभिव्यक्ति, कथा चक्र, बैतागबाड़ी आदि। यहां गाहे-बगाहे देश-विदेश के साहित्यकारों की रचनाएं लिखीं और पढ़ी जा रही है। कभी अनुवाद के तौर पर, कभी गाने के तौर पर तो कभी संस्मरण के तौर पर सर्वकालिक रचनाएं यहां मौजूद है। हालांकि कई कम्युनिटी ब्लॉग या और भी वेबसाइट है, जहां साहित्यिक रचनाओं के साथ- साथ दिलचस्प घटनाएं और बातें भी दिख रही है। मसलन, ’जानकीपुल‘ ब्लॉग को ही लें। क्या आपको मालूम है कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण कविता और कहानी भी लिखते थे। उनकी कहानी ’टामी पीर‘ कितने लोगों ने पढ़ी होगी? क्या आप इससे इत्तेफाक रख सकते है कि भारतीय उपमहाद्वीप के लेखकों के लिए सफलता का बड़ा फामरूला विस्थापन है। वह भी तब, जब भारत में ही मेधा पाटकर की आवाज विस्थापन का दर्द है। क्या आपको मालूम है कि 2011 में  शमशेर और नागार्जुन के अलावा गोपाल सिंह नेपाली की भी जन्म-शताब्दी है। ऐसी तमाम जानकारियों का खजाना है यह। इस ’पुल‘ होकर दुनिया जहान की ऐसी तमाम जानकारियां हर रोज गुजर रही है, जो शायद ही एक जगह इकट्ठी कहीं मिलें। 
शायरों- अदीबों की गली बल्लीमारान के इतिहास में पाठकों को जाने के लिए मजबूर करते हुए ब्लॉगर प्रभात रंजन बताते है कि बल्लीमारान को बेहतरीन नाविकों के लिए जाना जाता था। मुगलों की नाव यहीं से नाविक खेया करते थे। गुलशन नंदा और जासूसी उपन्यासकार ओमप्रकाश शर्मा के बारे में लिखते है, ’जनवादी विचारों को माननेवाला यह जासूसी लेखक बड़ी शिद्दत से इस बात में यकीन करता था कि ऐसे साहित्य की निरंतर रचना होनी चाहिए, जिनकी कीमत कम हो तथा समाज के निचले तबके के मनोरंजन का उसमें पूरा ध्यान रखा गया हो। मजदूर वर्ग की आवाज उनके उपन्यासों में बुलंद भाव में उभरती है। ‘ 
’जानकीपुल‘ से गुजरने पर संतुष्टि मिलती है। पढ़ने का एक संतोष भी मिलता है। पाठकों के बीच इसकी पैठ का बड़ा सबूत है इस ब्लॉग के फॉलोअर्स की संख्या एक सौ से अधिक होना। क्योंकि आज भी, यदि किसी ब्लॉग को फॉलो करने वालों का आंकड़ा सैकड़ा पार है तो इसके पीछे का कारण सिर्फ और सिर्फ कंटेंट होता है। यहां कई ऐसे मुद्दे है, जिन पर विस्तार से बातें की गई है, मसलन आखिर भारतीय मूल के कनाडाई लेखक रोहिंग्टन मिी के उपन्यास ’सच ए लांग जर्नी‘ की कहानी क्या है, जिसके कारण शिवसेना के आदित्य ठाकरे ने मुंबई विश्वविद्यालय के सिलेबस से हटवाकर ही दम लिया। 
बहरहाल, साहित्य या साहित्येतर जो भी हिन्दी ब्लॉग लिखे जा रहे है, उन पर रचनाएं या तो स्वमुग्ध है या फिर किसी दूसरे की। ’कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा‘ का अर्थ साकार हो रहा है। इसके जरिए ’की बोर्ड‘ के सिपाही को एक प्लेटफॉर्म तो दिया जा रहा है या रचनाएं किसी की टीपी जा रही है लेकिन मौलिकता देखने को नहीं मिल रही है। आज भी हिन्दी ब्लॉग लेखन में मुट्ठीभर संचालक ही है, जिनमें लेखन-क्षमता है और पाठक उन पर विश्वास करते है। इं साहित्य या साहित्येतर जो भी हिन्दी ब्लॉग लिखे जा रहे है, उन पर रचनाएं या तो स्वमुग्ध है या फिर किसी दूसरे की। ’कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा‘ का अर्थ साकार हो रहा है। यदि किसी ब्लॉग को फॉलो करने वालों का आंकड़ा सैकड़ा पार है तो इसके पीछे का कारण सिर्फ और सिर्फ कंटेंट है. 

9 comments:

अजय कुमार झा said...

नेट साहित्य पर एक सारगर्भित और सामयिक आलेख के लिए बधाई विनीत जी

Anonymous said...

वर्चुयल स्पेस की एक अलग तस्वीर से रूबरू कराने का शुक्रिया विनीत जी

Neeraj said...

मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने वाला एक सवाल मेरी तरफ से भी है, १०० से ज्यादा फोलोवर होना भी तो गारंटी नहीं कि कंटेंट अच्छा होगा|

वैसे अगर अच्छा है , नहीं है तो भी मुझे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, जब तक ब्लॉग पढने के पैसे न देने पड़ें|

वैसे जो भी लिंक आपने यहाँ पर दिए हैं , वे जरूर सहेजे जाने लायक हैं , बहुत धन्यवाद|

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

भाई विनीत उत्पल जी बहुत बहुत धन्यवाद एक अछूते [अमूमन] विषय पर कलम उठाने के लिए| आपके द्वारा लिखी कई बातें यथार्थ हैं| आपने सही लिखा है स्‍वमुग्धता के बारे में| मैं स्वयं सब कुछ नहीं जानता फिर भी वर्तमान हालातों पर आपकी पैनी नज़र की दाद देनी होगी|

मैं अपनी तरफ से एक छोटी सी बात जोड़ना चाहूँगा| आप भी इसी बात को किसी न किसी रूप में विवेचित कर चके हैं अपने इस आलेख में|

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम पर अभी अभी एक महा इवेंट के आयोजन का समापन हुआ है| इस आयोजन के कुछ मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे:

स्थापित रचनाधर्मियों का सम्मान
उदीयमान और अधविच में पड़े रचनाकरों का उत्साह वर्धन
किसी एक विषय पर साहित्य की अनेकानेक विधाओं में मौलिक लेखन की प्रस्तुति
लुप्तप्राय: छंदों के बारे में चर्चा
सीखने / सिखाने का दौर

मुझे आप को यह बताते हुई बहुत खुशी हो रही है कि अपनी तरह का ये एक मात्र पहला आयोजन रहा जिसमें सिर्फ़ १० दिनों के दरम्यान ही ४० से ज़्यादा कवि /कवियात्रियों की करीब २०० रचनाओं सहित १२०० रिप्लाइस पाए गये| ऐतिहासिक सफलता को वरण कर चुका यह आयोजन आपकी कही बात को सही साबित करता है|

मैं आप से सहमत हूँ, आज इंटरनेट हिन्दी साहित्य के उत्थान में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है|

आपसे प्रार्थना है, आगे भी इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारियों को ज़रूर साझा करें|

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

भाई विनीत उत्पल जी बहुत बहुत धन्यवाद एक अछूते [अमूमन] विषय पर कलम उठाने के लिए| आपके द्वारा लिखी कई बातें यथार्थ हैं| आपने सही लिखा है स्‍वमुग्धता के बारे में| मैं स्वयं सब कुछ नहीं जानता फिर भी वर्तमान हालातों पर आपकी पैनी नज़र की दाद देनी होगी|

मैं अपनी तरफ से एक छोटी सी बात जोड़ना चाहूँगा| आप भी इसी बात को किसी न किसी रूप में विवेचित कर चके हैं अपने इस आलेख में|

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम पर अभी अभी एक महा इवेंट के आयोजन का समापन हुआ है| इस आयोजन के कुछ मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे:

स्थापित रचनाधर्मियों का सम्मान
उदीयमान और अधविच में पड़े रचनाकरों का उत्साह वर्धन
किसी एक विषय पर साहित्य की अनेकानेक विधाओं में मौलिक लेखन की प्रस्तुति
लुप्तप्राय: छंदों के बारे में चर्चा
सीखने / सिखाने का दौर

मुझे आप को यह बताते हुई बहुत खुशी हो रही है कि अपनी तरह का ये एक मात्र पहला आयोजन रहा जिसमें सिर्फ़ १० दिनों के दरम्यान ही ४० से ज़्यादा कवि /कवियात्रियों की करीब २०० रचनाओं सहित १२०० रिप्लाइस पाए गये| ऐतिहासिक सफलता को वरण कर चुका यह आयोजन आपकी कही बात को सही साबित करता है|

मैं आप से सहमत हूँ, आज इंटरनेट हिन्दी साहित्य के उत्थान में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है|

आपसे प्रार्थना है, आगे भी इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारियों को ज़रूर साझा करें|

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

भाई विनीत उत्पल जी बहुत बहुत धन्यवाद एक अछूते [अमूमन] विषय पर कलम उठाने के लिए| आपके द्वारा लिखी कई बातें यथार्थ हैं| आपने सही लिखा है स्‍वमुग्धता के बारे में| मैं स्वयं सब कुछ नहीं जानता फिर भी वर्तमान हालातों पर आपकी पैनी नज़र की दाद देनी होगी|

मैं अपनी तरफ से एक छोटी सी बात जोड़ना चाहूँगा| आप भी इसी बात को किसी न किसी रूप में विवेचित कर चके हैं अपने इस आलेख में|

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम पर अभी अभी एक महा इवेंट के आयोजन का समापन हुआ है| इस आयोजन के कुछ मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे:

स्थापित रचनाधर्मियों का सम्मान
उदीयमान और अधविच में पड़े रचनाकरों का उत्साह वर्धन
किसी एक विषय पर साहित्य की अनेकानेक विधाओं में मौलिक लेखन की प्रस्तुति
लुप्तप्राय: छंदों के बारे में चर्चा
सीखने / सिखाने का दौर

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

मुझे आप को यह बताते हुई बहुत खुशी हो रही है कि अपनी तरह का ये एक मात्र पहला आयोजन रहा जिसमें सिर्फ़ १० दिनों के दरम्यान ही ४० से ज़्यादा कवि /कवियात्रियों की करीब २०० रचनाओं सहित १२०० रिप्लाइस पाए गये| ऐतिहासिक सफलता को वरण कर चुका यह आयोजन आपकी कही बात को सही साबित करता है|

मैं आप से सहमत हूँ, आज इंटरनेट हिन्दी साहित्य के उत्थान में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है|

आपसे प्रार्थना है, आगे भी इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारियों को ज़रूर साझा करें|

सृजनगाथा said...

भाईजी, इसमें एक और नाम सृजनगाथा का भी होना चाहिए... उदारता दिखायेंगे तो... www.srijangatha.com जो पिछले पाँच साल से नेट पर है...