1/28/2011

लड़की के चक्कर में नहीं अजय देवगन


बीते साल में अजय देवगन के दोनों हाथों में लड्डू रहे। लगातार चार फिल्मों का हिट होना व बेटे युग के रूप में नये मेहमान का आगमन। अजय नयी खुशी व उत्साह से भरे हैं। उनकी फिल्म ’दिल तो बच्चा है जी‘ के रिलीज पर अजय से बात- 
क्या आप अब भी बच्चे हैं?
मैं तो अब भी बच्चा हूं, हालांकि फिल्म में मेरी हरकतें बच्चों जैसी नहीं हैं। सभी अपने अतीत को देखें, तो सभी बच्चे रहे हैं। लड़की के चक्कर में मैं कभी नहीं रहा। सभी के रियल लाइफ में कुछ न कुछ तो होता ही है । बचपन में सभी गलतियां करने पर यही कहते हैं और सोचते हैं कि फिर ऐसी गलती नहीं करूंगा, लेकिन दोबारा करते हैं।
फिल्म में ऐसा क्या?
जो भी लोग ’दिल तो बच्चा है जी‘ देखेंगे, वे यह जरूर सोचेंगे कि यह घटना तो मेरे साथ हो चुकी है, हो रही है या होगी। फिल्म में कैरेक्टर का डायवोर्स हो रहा है। हर इंसान अलग-अलग होते हैं। डायलॉग अच्छे हैं, हंसाते हैं, आज के जेनरेशन के हैं। जो वे बोलते हैं, वही डायलॉग है। काफी रियल नेचर के हैं।
अपने चरित्र के बारे में बताइए?
काफी दिलचस्प है। मैं 38-40 साल के पुरानी जेनरेशन के आदमी का रोल कर रहा हूं, जिसकी सोच पुरानी है। उसका तलाक होने वाला है फिर उसकी जिंदगी में 18 साल की लड़की के आने से किस तरह के बदलाव आते हैं।
ऐसा नहीं है कि मैं सिर्फ कॉमेडी कर रहा हूं। मैंने ‘राजनीति‘ भी की। जल्द ही मैं एक्शन पैक्ड ‘तेज‘ में नजर आऊंगा। वैसे भी ‘वान्टेड‘ व ’दबंग‘ की सफलता ने जता दिया कि आज भी लोग एक्शन के कितने दीवाने हैं
हर बार कॉमेडी फिल्म करने की वजह?
हंसना मेरी जरूरत है। एक-सा किरदार करते-करते मजा आना बंद हो जाता है। किसी भी एक्टर को हर तरह का किरदार करना चाहिए। मेरे पास ऑफर आए तो मैं खुद को रोक नहीं सका। जब इसकी स्क्रिप्ट सुनी तो लगा, यह काफी हंसा रही है। थोड़ा-सा हटकर है यह फिल्म। हंसाते-हंसाते आंखें नम कर देती है। आपको लगेगा कि यह तो मैं कर सकता हूं।
मधुर के साथ काम का अनुभव कैसा रहा?
मधुर भंडारकर का सेंस ऑफ ह्यूमर काफी अच्छा है। कॉमेडी में वक्त की ज्यादा जरूरत होती है। यदि आप उनकी ’पेज थ्री‘ देखें तो आपको डार्क ह्यूमर तो नजर आता है। वे बेहद सेंसिबल निर्देशक हैं।
क्या अब कॉमेडी फिल्मों का दौर है?
कॉमेडी या ह्यूमर का नहीं, इंटरटेनमेंट का दौर है। एक्साइटमेंट्स और इमोशन्स ही इंटरटेनमेंट है। अगर आप एक ही चीज यानी एक ही तरह के अभिनय करेंगे, तो न तो खुद को और न ही दर्शकों को संतुष्ट कर पाएंगे।
फिल्म को ’ए‘ सर्टिफिकेट क्यों मिला?
किस आधार पर सर्टिफिकेट दिया जाता, यह तो पता नहीं। जहां तक अश्लील दृश्यों या डायलॉग की बात है तो आज के दौर में छोटे पर्दे पर ज्यादा अश्लीलता है। नियम-कानून को भी वक्त के साथ बदला जाना चाहिए।
एक्शन करने का मन नहीं होता?
ऐसा नहीं है कि मैं सिर्फ कॉमेडी कर रहा हूं। मैंने ‘राजनीति‘ भी की। जल्द ही मैं एक्शन पैक्ड ‘तेज‘ में नजर आऊंगा। वैसे भी ‘वान्टेड‘ व ‘दबंग‘
की सफलता ने जता दिया कि आज भी लोग एक्शन के कितने दीवाने हैं। ‘तेज‘ एक भव्य बजट की ऐसी एक्शन फिल्म है जैसी करने को मैं एक अरसे से तरस रहा था।
आप अपने फेवरेट निर्देशक रोहित शेट्टी के साथ भी फिल्म करने जा रहे हैं?
हां, वह तमिल हिट फिल्म ’सिंगम‘ का रीमेक है। यह भी एक्शन प्रधान फिल्म होगी, जिसमें इमोशनल एंगल दिल को छू लेने वाला है।
रोहित शेट्टी से आपकी गहरी दोस्ती है?
इस दोस्ती को बरसों हो गये। मैं उसे पिछले 18-20 बरसों से जानता हूं, तब वह संदेश कोहली का सहायक हुआ करता था। हम लोग हमेशा टच में रहे। हां, बीते बरसों में हमारी दोस्ती और गहरी हो गयी। हम काफी सारा वक्त साथ बिताते हैं।
दोबारा पिता बनने का अनुभव कैसा रहा?
अच्छा, बहुत अच्छा (हंसते हुए) पर मैं युग के बजाय न्यासा को ज्यादा समय देता हूं। वह बड़ी हो गयी है, उसे पूरे प्यारदु लार की जरूरत है। युग अभी छोटा है। उसका पूरा ध्यान काजोल रखती है। इस तरह हमने जिम्मेदारियां बांट ली हैं।

1/26/2011

विज्ञान का संगीत राग: अश्विनी भिडे


आमतौर पर माना जाता है कि विज्ञान से जुड़े लोग नीरस होते हैं, पढ़ाकू होते हैं और कला-संगीत से उनका कोई वास्ता नहीं होता है। मगर आज के दौर में यह बात गलत साबित होती है। मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम जहां वीणा बजाते थे, वहीं अश्विनी भिडे वैज्ञानिक होने के साथ-साथ संगीतज्ञ भी हैं। उनके अंदर ऐसा मन है जो कभी विज्ञान के गूढ़ फामरूले में रमता था लेकिन संगीत की साधना ने उन्हें अलग मुकाम दिया है। वह पहली महिला संगीतकार हैं जिन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान से सम्मानित किया है। जयपुर घराने से ताल्लुक रखने वाली अश्विनी ने मुंबई विश्वविद्यालय से माइक्रोबायोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की और फिर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर से बायोकेमिस्ट्री में डॉक्टरेट की डिग्री। विज्ञान को छोड़ संगीत में मन रमाने को लेकर वह कहती हैं कि बचपन से ही संगीत सीख रही थी लेकिन पढ़ाई विज्ञान में कर रही थी, फिर भी विज्ञान में करियर बनाने में ध्यान ही नहीं गया। अपने संगीत के सफर को लेकर वह कहती हैं, ’मैं अपनी मां माणिक भिडे से उपज आहर लयकारी की पारंपरिक गायन सीखी है। मां ही मेरी पहली गुरु रही हैं। रत्नाकर पाई से मैंने अलग-अलग घराने की छोटी-छोटी बातों को सीखा।‘
मुंबई के संगीतज्ञ परिवार में पैदा होने वाली अश्विनी भिडे ने नारायण राव दातार से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की। एक ओर जहां वह विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर रही थी, वहीं गंधर्व महाविद्यालय से संगीत विशारद भी पूरा किया। हालांकि संगीत में करियर बनाने की बात उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री पाने तक सोची भी नहीं थी। यह और बात है कि वह बचपन से ही म्यूजिकल कंसर्ट में जाती रही हैं। 1977 में उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो म्यूजिक कंपीटिशन में प्रेसिडेंट्स गोल्ड मेडल का अवार्ड मिला। हिन्दुस्तानी क्लासिकल वोकल म्यूजिक में उनके योगदान को देखते हुए 2010 में उन्हें सहाद्रि दूरदर्शन संगीत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पंडित जसराज के 75वें जन्मदिन पर उन्हें पंडित जसराज गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अश्विनी कहती हैं संगीत का कोई खास रास्ता नहीं होता। यही कारण है कि मैं कबीर, सूरदास और मीरा को एक साथ गाती हूं। वह कहती हैं कि महिलाओं का संगीत के क्षेत्र में आना समय की मांग है। संगीत गहन साधना की मांग करता है। आप बिना तैयारी और सजगता के साथ कभी नहीं गा सकते।